मध्यकालीन भारतीय इतिहास में हमने कई ताकतवर राजाओं को देखा है कि वो कितने महान व ताकतवर थे। ऐसे ही इतिहास में हमें कई रानियों की भी कहानी मिलती है जो खुद में काफी मशहूर व महान थी। ऐसे ही एक रानी थीं रजिया सुल्तान। आज के इस आर्टिकल में हम रजिया सुल्तान के बारे में जानेंगे।
रज़िया सुल्तान का जन्म 12 सौ 5 ईस्वी को बदायू में हुआ था। उनके पिता का नाम शमसुद्दीन इल्तुतमिश और माता का नाम तुर्कान खातून था। रज़िया बहुत बहादुर थी और एक मात्र महिला थी जिन्होंने दिल्ली पर राज्य किया। वो अपने पिता इल्तुतमिश की मृत्यु 12 अप्रैल 19 सौ 36 ईस्वी के बाद दिल्ली की सल्तनत पर बैठी। । वो बहुत बहादुर और कुशल शासक थी।
एक कुशल योद्धा होने के कारन ही वो गुलाम वंश की सुल्तान बानी। उन्होंने 3 साल राज्य किया पर इतने कम समय में ही उन्होंने इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया। दिल्ली में स्थित उनका मखबरा आज भी हमें उनकी बहादुरी की कहानी सुनाता है। रज़िया सुल्तान अपने पिता इल्तुतमिश की एकलौती पुत्री थी।
रज़िया के 3 भाई थे। उनके पिता दिल्ली में क़ुतबुद्दीन के दरबार में दास का काम करते थे। क़ुतबुद्दीन उनके कठिन परिश्रम से इतने खुश हुए कि उन्होंने उसे कार्यकारी राज्यपाल बना दिया। क़ुतबुद्दीन के अच्छे राज्य में उनका अहम भूमिका थी इसलिए कुतबुद्द्दीन अपनी बेटी की शादी इल्तुतमिश से कर दी।
कुतबुद्द्दीन की मृत्यु के बाद उनका पुत्र आराम बक्श ने 12 सौ 10 में राजा बना। वो एक अच्छा राजा नहीं था इसलिए इल्तुतमिश ने उसे हराकर राज्य को अपने काबू में कर लिया। इल्तुतमिश एक अच्छे राजा ही नहीं बल्कि एक आज़ाद दिमाग वाले इंसान थे। उन्होंने देखा कि उनकी सभी संताने लड़ाई का अच्छा प्रक्षिक्षण ले रहे है।
उन्होंने यह भी देखा की उनकी पुत्री उनके अन्य पुत्रो से अधिक सक्षम है। उनके पुत्रो का अधिकतर समय सिर्फ विलासिता में ही व्यतीत हो रहा था। इसलिए उन्होंने अपनी मुस्लिम परंपरा को तोड़ कर अपनी पुत्री रज़िया को आने वाला सुल्तान बनाने की घोषणा कर दी जो कि प्रथम महिला राजा थी।
इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद उनके एक बेटे रुकनुद्दीन ने ताज पर अधिकार कर लिया।लेकिन 9 नवंबर 12 सौ 36 को रूकनुद्दीन तथा उसकी माता, शाह तुर्कान की हत्या कर दी गयी। उसने सिर्फ 7 महीने तक शासन किया। इसके बाद सुल्तान के लिए अन्य किसी विकल्प के अभाव में मुसलमानों को एक महिला को शासन की बागडोर देनी पड़ी और रजिया सुल्तान दिल्ली की शासिका बन गई।
जल्द ही उन्होंने राज संभाल लिया और सभी मुद्राओ पर अपना नाम अंकित करवा दिया। वो एक अच्छी राजा सिद्ध हुई और राज्य में जनता का और अन्य चीज़ों का ध्यान रखा। उन्होंने कई लड़ाईया लड़ी और अपनी सल्तनत को बढ़ाया।उन्होंने अपने राज्य में कई स्कूल और मंदिर बनवाये। उनके राज्य में सभी धर्म के लोग एक साथ रहते थे।
हिन्दुओ के द्वारा किये गए कार्य व अविष्कार भी उनके स्कूल में पढाये जाते थे।
उनका राज बहुत दिनों तक नहीं चला क्योंकि तुकी समुदाय के लोग उनसे जलते थे और उन्हें सुल्तान के रूप में नहीं देख सकते थे। उन्होंने रज़िया के खिलाफ विद्रोह की योजना बनाई।
भटिंडा के राज्यपाल मल्लिक इख्तियार उद्दीन अल्तुनिया ने अन्य प्रान्तीय राज्यपालों, जिन्हें रज़िया का अधिपत्य नामंजूर था, के साथ मिलकर विद्रोह कर दिया। रज़िया और अल्तुनिया के बीच युद्ध हुआ जिसमें याकुत मारा गया और रज़िया को बंदी बना लिया गया। और अल्तुनिया रज़िया को शादी करने को बोला। मरने के डर से रज़िया अल्तुनिया से शादी करने को तैयार हो गयी।
इस बीच, रज़िया के भाई, मैज़ुद्दीन बेहराम शाह, ने सिंहासन हथिया लिया। अपनी सल्तनत की वापसी के लिये रज़िया और उसके पति, अल्तुनिया ने बेहराम शाह से युद्ध किया, जिसमें उनकी हार हुई। उन्हें दिल्ली छोड़कर भागना पड़ा और अगले दिन वो कैथल पंहुचे, जहां उनकी सेना ने साथ छोड़ दिया।
वहां डाकुओं के द्वारा 14 अक्टूबर 12 सौ 40 को दोनों मारे गये। बाद में बेहराम को भी अयोग्यता के कारण गद्दी से हटना पड़ा।
0 टिप्पणियाँ