आज हम उस योद्धा के बारे में बात करने वाले हैं जिसे विश्व विजेता के तौर पर याद किया जाता है वह पहला ऐसा इंसान था जिसने पूरी दुनिया को जीतने का सपना देखा था जिसने कभी कोई भी युद्ध नहीं हारा। और भारत में हम उसे सिकंदर महान के नाम से जानते हैं।
आज के इस आर्टिकल में आप सिकंदर महान के बारे में पढ़ेंगे।
सिकंदर का जन्म 20 जुलाई, 356 ईसा पूर्व में प्राचीन नेपोलियन की राजधानी पेला में हुआ था। सिकंदर का पूरा नाम अलेक्जेंडर तृतीय और एलेक्जेंडर मेसेडोनियन था। जो पूरी दुनिया को जितने का सपना देखता था। सिकंदर के पिता का नाम फिलीप द्धितीय था। जो कि मकदूनिया और ओलम्पिया के राजा थे। वहीं सिकंदर की माता का नाम ओलिम्पिया थी।
सिकंदर एक कुशल और यशस्वी सेनापति था। इतिहास में सिकंदर के साहस और वीरता के कई किस्से प्रचलित है। इस दुनिया में कई महान लोग आए लेकिन सिकंदर जैसा कोई नहीं था। लेकिन पिता की मौत के बाद सिकंदर ने राजगद्दी पाने के लिए सेना को इकट्ठा कर अपने सौतेले और चचेरे भाइयों की हत्या कर दी। और फिर वह मकदूनिया का राजा बन गया था।
सिकंदर अपने कार्यकाल में इरान, सीरिया, मिस्र, फिनीशिया, मेसोपोटेमिया, जुदेआ, गाझा, बैक्ट्रिया और भारत में पंजाब तक के प्रदेश पर विजय हासिल की थी। सिकंदर बचपन से ही बेहद बुद्धिमान था लेकिन सिकंदर का स्वभाव उग्र था। शुरुआती शिक्षा सिकंदर ने अपने रिश्तेदार। दी स्टर्न लियोनीडास ऑफ एपिरुस से ली थी।
सिकंदर के पिता फिलीप चाहते थे कि सिकंदर को पढ़ाई के साथ-साथ युद्ध विद्या का भी पूरा ज्ञान हो। इसलिए उन्होनें अपने एक अनुभवी और कुशल रिश्तेदार को सिकंदर के लिए नियुक्त किया था, जिससे सिकंदर ने गणित, घुड़ सवारी, धनुर्विद्या का ज्ञान लिया था । लेकिन सिकंदर के उग्र और विद्रोही स्वभाव को वह संभाल नहीं पाए और छोड़ कर चले गये। फिर सिकंदर के पिता ने उनके लिए एक निजी शिक्षक एरिसटोटल। अरस्तू की नियुक्ति की। वे एक प्रसिद्ध और महान दार्शनिक थे।अरस्तू ने सिकंदर को करीब 3 सालों तक साहित्य की शिक्षा दी और वाक्पटुता भी सिखाई, इसके अलावा अरस्तु ने सिकन्दर का रुझान विज्ञान, दर्शन-शास्त्र और मेडिकल के क्षेत्र में भी जगाया।
ये सभी विद्याएं ही कालान्तर में सिकन्दर के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया। वहीं कई इतिहासकार मानते हैं कि उनके गुरु अरस्तू ने ही सिकंदर के मन में पूरी दुनिया को जीतने का सपना दिखाया था।20 वर्ष की उम्र में ही सिकंदर को रईसों और सेना द्वारा राजा घोषित कर दिया गया। कहा जाता है की फारसी साम्राज्य, सिकंदर के साम्राज्य से करीब 40 गुना ज्यादा बड़ा था, जिसका शासक, शाह दारा था।
फारसी सम्राज्य जो कि मिस्त्र, इरान से लेकर पश्चिमोत्तर भारत तक फैला था। लेकिन सिकंदर ने उसे अपनी सैन्य शक्ति से कई बार युद्धो में हराकर उसका साम्राज्य हासिल कर लिया और शाह दारा ने सिकंदर से संधि कर ली। और अपनी बेटी रुखसाना का विवाह उससे करवा दिया।
उसके बाद सिकंदर भारत की ओर बढ़ा।
सिकंदर ने सबसे पहले गंधार के सभी प्रमुखों को आमंत्रित कर, उन्हें अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया। इसके बाद सिकंदर ने 326 ईसा पूर्व में पंजाब में सिंधु नदी को पार करते हुए तक्षशिला पहुंचा। जहाँ का शासक आम्भी था जिसका राज्य सिंधु नदी से झेलम नदी तक फैला हुआ था, सिकंदर के कहने पर आम्भी ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली।
पश्चिमोत्तर प्रदेश के आस पास के कई छोटे बड़े राजा ने आम्भी के बाद सिकंदर की अधीनता स्वीकार कर ली। लेकिन सिकंदर के लिए भारत को जितना आसान नही होने वाला था।क्योंकि उसका सामना राजा पोरस से होने वला था। जो आसान नही था। राजा पोरस पोरवा के वंशज थे।अपने आस पास के सभी राज्य में राजा पोरस को सबसे शक्तिशाली माना जाता था।
तक्षशिला के बाद सिकंदर ,पोरस के राज्य की तरफ बढ़ा पोरस का राज्य झेलम और चेनाब नदी के बीच बसा हुआ था। झेलम नदी को पार कर सिकंदर ने पोरस राज्य पर आक्रमण कर दिया , राजा पोरस ने बहादुरी के साथ सिकंदर के साथ लड़ाई लड़ी और हार मानने को तैयार नही थे। लेकिन सैन्य शक्ति कम होने के कारन पोरस को काफी संघर्ष के बाद सिकंदर से हार माननी पड़ी।
वहीं इस युद्ध में सिकंदर की सेना को भी भारी नुकसान पहुंचा था। युद्ध में पोरस पराजित हुआ परन्तु उसकी वीरता से प्रभावित होकर सिकन्दर ने उसे अपना मित्र बनाकर उसे उसका राज्य तथा कुछ नए राज्य दे दिए। उसके बाद सिकंदर की सेना ने छोटे हिंदू गणराज्यों के साथ लड़ाई की। इसमें कठ गणराज्य के साथ हुई लड़ाई काफी बड़ी थी।
आपको बता दें कि कठ जाति के लोग अपने साहस के लिए जानी जाती थी।
यह भी माना जाता है कि इन सभी गणराज्यों को एक साथ लाने में आचार्य चाणक्य का भी बहुत बड़ा योगदान था। इस सभी गणराज्यों ने सिकंदर को काफी नुकसान भी पहुंचाया था जिससे सिकंदर की सेना बेहद डर गई थी। सिकंदर व्यास नदी तक पहुँचा, परन्तु वहाँ से उसे वापस लौटना पड़ा।
क्यूंकि कठों से युद्ध लड़ने के बाद उसकी सेना ने आगे बढ़ने से मना कर दिया था। दरअसल व्यास नदी के पार नंदवंशी के राजा धनानंद के पास 20 हजार घुड़सवार सैनिक, 2 लाख पैदल सैनिक, 2 हजार 4 घोड़े वाले रथ और करीब 6 हजार हाथी थे। सिकंदर पूरे भारत पर ही विजय पाना चाहता था लेकिन उसे अपनी सैनिकों की मर्जी की वजह से व्यास नदी से ही वापस लौटना पड़ा था।
पूरी दुनिया को जितने का सपना रखने वाले सिकंदर जब कार्थेज और रोम पर विजय प्राप्त करने के बाद 323 ईसा पूर्व में बेबीलोन पहुंचा तो वहां पर उसे भीषण बुखार (Typhoid) ने जकड़ लिया तथा 33 वर्ष की उम्र में 10 जून 323 ईसा पूर्व में सिकन्दर की मृत्यु हो गई।
इस तरह एक महान योद्धा का अंत हो गया।
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