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मोहम्मद गौरी का इतिहास और जीवन परिचय ( History of Mohammad gauri in Hindi )

Mohammad gauri ka itihaas

( मोहम्मद गौरी )

भारतीय इतिहास में मोहम्मद गौरी की गिनती महानतम शासकों में होती है। मोहम्मद गौरी एक निर्भीक और साहसी अफगान योद्धा था, जिसने गजनी साम्राज्य के अधीन गौर नामक राज पर अपना सिक्का चलाया था। वहीं भारत में तुर्क साम्राज्य की स्थापना का श्रेय भी मोहम्मद गौरी को ही दिया जाता है। मोहम्मद गौरी एक अपराजित विजेता और सैन्य संचालक भी था।

मुस्लिम शासक मोहम्‍मद गौरी के जन्‍म को लेकर इतिहासकारो में एक राय नहीं है । एक अनुमान के आधार पर मोहम्‍मद गौरी का जन्‍म 1149 ईस्वी को गौर अफगानिस्‍तान में हुआ । उनके पिता का नाम बहालुद्दीन साम प्रथम था । मोहम्‍मद गौरी के भाई का नाम गियासुद्दीन मोहम्‍मद गौरी था ।

मोहम्‍मद गौरी एवं गौरी वंश की स्‍थापना –

गौरी वंश की स्‍थापना 12 वीं शताब्‍दी में अला-उद-दीन जहानसोज ने किया था। अला-उद-दीन जहानसोज के मृत्‍यू के बाद सन 1161 में उसका पुत्र सैफ-उद-दीन गौरी सिंहासन पर बिठा । अला-उद-दीन जहानसोज ने मरने से पहले अपने दो भतीजे शहाबुद्दीन और गियासुद्दीन को बंदी बनाया था । मगर सैफ-उद-दीन ने सिंहासन पर बैठते ही उन्‍हें कैद से आजाद किया।

गौरी वंश इस समय गजनवियों और सलजूको की अधिनता से निकलने के कोशिश में था।

11 सौ 48 ईस्वी में सलजूको ने गजनवियों को समाप्‍त कर दिया था । लेकिन कुछ काल के लिए गौर प्रांत पर सीधा कब्‍जा कर लिया था । सलजूको ने सैफ-उद-दीन की पत्‍नी के जेवर भी ले लिए थे ।

सिंहासन पर बैठते ही सैफ-उद-दीन ने किसी स्‍थानीय सरदार को अपने पत्‍नी के जेवर पहने देखा तब सैफ-उद-दीन ने उस सरदार को मार डाला । मृतक सरदार के भाई ने कुछ महीनो के बाद सैफ-उद-दीन को मार डाला ।

सैफ-उद-दीन का शासनकाल मात्र एक साल के आसपास रहा । गियासुद्दीन अब नया शासक बना । गियासुद्दीन के छोटे भाई शहाबुद्दीन ने उसका राज्‍य विस्‍तार करने में बहुत मदद की ।

शहाबुद्दीन ने पहले गजनी पर कब्‍जा किया । शिहाबुद्दीन उर्फ मोहम्‍मद गौरी 1173 ईस्वी में गौरी साम्राज्‍य का सुल्‍तान बना ।
उसने गजनी को अपने साम्राज्‍य की राजधानी बनाया था । गजनी को राजधानी बनाकर अफगानिस्‍तान के आस-पास के राज्‍यों में अपना वर्चस्‍व बढा लिया था। गौरी एक महान विजेता और सैन्‍य संचालक भी था । भारत में तूर्क साम्राज्‍य का संस्थापक मोहम्‍मद गौरी को माना जाता है ।

इनके शासन में अनेक तुर्क सेनादार रखे थे । इन तुर्क सेनादारो को उन्‍होंने शास्‍त्र शुध्‍द सैन्‍य प्रशिक्षण दिया था । मोहम्‍मद गौरी की सेना में कई ऐसे वफादार सैनिक थे जो उनके लिए अपने प्राण देने के लिए तैयार रहते थे । इन सरदारो में कुतुब-उद-दीन ऐबक मोहम्‍मद गौरी का सबसे प्रिय गुलाम था ।

मोहम्‍मद गौरी का भारत पर आक्रमण

गौरी आक्रमक और कुशल अफगान का योद्धा था । जो एक साहसी और कभी हार नहीं मानने वाला सेनापती था । जो हमेशा आक्रमण युध्‍द नीत‍ि के लिए जाना जाता है । मोहम्‍मद गौरी का भारत पर आक्रमण करने के पीछे का उद्देश्‍य सिर्फ लूटपाट करना नहीं था । उन्‍हें भारत में मुस्लिम राज्‍य की स्‍थापना करनी थी ।
भारत पर अपना अधिराज्‍य स्‍थापित करने के लिए मोहम्‍मद गौरी ने 11 सौ 75 ईस्वी में मुल्‍तान पर सबसे पहले आक्रमण किया था ।

मुल्‍तान पर उस समय शिया को माननेवाले करामाता का शासन था । मुल्‍तान को मोहम्‍मद गौरी ने जीत लिया ।
ईसवी सन 11 सौ 78 ईस्वी में मोहम्‍मद गौरी ने गुजरात पर आक्रमण किया । लेकिन गुजरात पाटन के शासक भीम द्वितीय ने मोहम्‍मद गौरी को पूरी तरह से पराजित करके खदेड दिया । मोहम्‍मद गौरी की भारतीय धरती पर पहली हार थी ।
अब मोहम्‍मद गोरी ने अपनी नजरे पंजाब पर डाली ।

पंजाब पर अधिराज्‍य प्रस्‍थापित करने के लिए सन 11 सौ 79 के बीच आक्रमण किया और पंजाब पर अपना अधिराज्‍य स्‍थापित किया । पंजाब पर जीत हासिल करने के बाद मोहम्‍मद गौरी ने लाहौर, पेशावर, भटिण्‍डा और स्‍यालकोट भी अपने कब्‍जे में ले लिया । अब पंजाब के अधिकतर क्षेत्रों में मोहम्‍मद गौरी का साम्राज्‍य था ।

तराईन का युद्ध

तराईन का प्रथम युद्ध

लेकिन दूसरी तरफ दिल्ली में शासन के बाद पृथ्वीराज चौहान ने अपने राज्य को पंजाब तक विस्तार करने का सोचा। उन्होंने अपनी सेना के साथ पंजाब पर आक्रमण कर दिया और युद्ध में हांसी, सरहिंद और  सरस्वती, को मोहम्मद गौरी हार गया। कुछ दिनों के बाद मोहम्मद गौरी की सेना ने भी आक्रमण कर दिया।

परन्तु भयानक चले इस युद्ध में  फिर से उसकी सेना हार गयी और इस युद्ध में गौरी बहुत बुरी तरह घायल हो गया और अपनी जान बचा कर भाग खड़ा हुआ। यह युद्ध सरहिंद के किले के नजदीक तराईन नामक स्थान पर हुआ था जिसके चलते इस युद्ध को तराईन का युद्ध कहा जाता है।
यह युद्ध पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच 11 सौ 91 ईस्वी में लड़ा गया था।

जिसमे पृथ्वीराज चौहान की जीत और मोहम्मद गौरी की हार हुई थी । उस समय पृथ्वीराज की सेना बहुत ही मजबूत थी। जिसमे एक से बड़कर एक वीर योद्धा, कई घुड़ सवार और तीन लाख से अधिक की सेना थी जिसे हरा पाना बेहद ही मुस्किल था।

तराईन का द्वितीय युद्ध

तराईन का द्वितीय युद्ध भी पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच ही लड़ा गया था। जिसमे  मोहम्मद गौरी ने छल से पृथ्वीराज को पकड़ कर घायल कर दिया था। इस युद्ध से पहले मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान से 16 बार हार चूका था और वह जनता था की उस वीर योद्धा को ऐसे युद्ध में हरा पाना मुस्किल है।
इसलिए उसने तराईन के मैदान में जयचंद की मदद से 11 सौ 92 ईस्वी में फिर से आक्रमण कर दिया और इस बार उसने जयचंद से मिलकर अपनी सेना को और भी विशाल कर लिया था। जयचंद और मोहम्मद गोरी की एक साथ मिली विशाल सेना से पृथ्वीराज की सेना ने डट कर मुकाबला किया और वीर गति को प्राप्त होते रहे।
जिसके बाद पृथ्वीराज अकेले पड़ गए और  इसी का फायदा उठा कर गौरी की सेना ने पृथ्वीराज चौहान को चारो तरफ से घेर लिया और मोहम्म गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को उसी वक्त कतल कर दिया।

कई इतिहासकारों के अनुसार पृथ्वीराज चौहान हार रहे थे तो उन्होंने बहुत से राजाओं से मदद माँगा परन्तु बहुत से राजपूत राजा जो संयोगिता स्वयंबर में अपमानित हुए थे।
उन्होंने मदद देने से मना कर दिया लेकिन इस मौके का फायदा उठा कर जयचंद ने पृथ्वीराज चौहान को मदद का वादा देकर उन्हें उनके मित्र चंदबरदाई के साथ गिरफ्तार कर लिया और मोहम्मद गोरी को जाकर सौप दिया। इसके बाद मोहम्मद गोरी ने दोनों को लेकर अफगानिस्तान चला गया था। और इसके बाद कोई हिन्दू राजा ने राज्य नही किया, इस तरह तराईन का द्वितीय युद्ध छल पूर्वक समाप्त हुआ था।
पृथ्वीराज रासो में यह बताया गया है कि पृथ्वीराज चौहान और चंदबरदाई को लेकर मोहम्मद गोरी अपने प्रतिशोध को पूरा करने के लिए उन्हें  अफगानिस्तान लेकर चला गया था। जहाँ जाकर उसने अपनी बर्बरता का परिचय दिया।

उसने  पृथ्वीराज को बहुत ही शारीरिक यातनाए दिया इसके बाद उसने उनके दोनों आँख को निकाल लिया परन्तु उन्होंने एक उफ् तक नही किया जिसे देख कर गोरी घबरा गया और जान से मारने का आदेश जारी कर दिया।
इसके बाद चंदबरदाई ने पृथ्वीराज चौहान को गोरी को मारने के षड़यंत्र के बारे में बताया और उन्होंने अपने बनाए गये षड़यंत्र में फसाने के लिए मोहम्मद गोरी से बोला की पृथ्वीराज शब्दभेदी बाण चलाता है

इसका प्रतियोगिता किया जाये इस बात पर मोहम्मद गोरी बहुत हँसा और मजाक बनाने के लिए उसने  प्रतियोगिता रख दिया।
अपने शब्दभेदी बाण के लिए प्रसिद्ध पृथ्वीराज चौहान ने प्रतियोगिता में अपने मित्र चंदबरदाई के द्वारा कहे गये कविता "चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण ता ऊपर सुल्तान है मत चुके चौहान"  कविता की मदद से उन्होंने मोहम्मद गोरी को मौत के घाट उतार दिया और दुश्मन के हाथो मरने के वजाय खुद ही दोनों ने अपनी जीवन को समाप्त कर लिया। एक दुसरे अनुमान के अनुसार तराइन के दूसरे युध्‍द के बाद पृथ्‍वीराज चौहान ने मोहम्‍मद गौरी के अधीनता में अजमेर पर राज करना जारी रखा । 
इसके बाद मोहम्‍मद गौरी ने पृथ्‍वीराज चौहान को मार दिया और उनकी कब्र अफगानिस्‍तान में बनवा ली। पृथ्‍वीराज चौहान के मृत्‍यू के बाद मोहम्‍मद गौरी और कन्‍नोज के राजा जयचंद के बीच युध्‍द हुआ ।युध्‍द में राजा जयचंद का हार हुआ । इस युध्‍द को ‘चंद्रवार’ युध्‍द कहा जाता है ।
इस युध्‍द के बाद मोहम्‍मद गौरी ने अपने प्रिय गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्‍ली का सुल्‍तान बनाकर अफगानिस्‍तान वापस जाने के लिए निकला । तब मोहम्‍मद गौरी को 1206 ईस्वी में झेलम नदी के किनारे खोखर जाटों ने मार डाला ।
मोहम्मद गौरी


उम्मीद है मोहम्मद गौरी के बारे में दि गई जानकारी आपको अच्छी लगी होगी।

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