अगर इतिहास के पन्नों पर गौर किया जाए तो चंद्रगुप्त मौर्य का नाम स्वर्ण अक्षरो में अंकित है। इतिहास की चर्चा हो। और चंद्रगुप्त का नाम न लिया जाए, ये तो हो ही नहीं सकता है। जी हां तेजस्वी प्रतापी राजा चंद्रगुप्त मौर्य के बारे में हर कोई जानना चाहता है। तो आइये इस आर्टिकल के माध्यम से जानते हैं चंद्रगुप्त मौर्य के बारे में।
चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म 340 ईसा पूर्व पाटलीपुत्र वर्तमान पटना में हुआ था। उनके जन्म को लेकर इतिहासकारों की अलग-अलग मत है। कुछ का मानना है की चन्द्रगुप्त मौर्य नंदा वंश के थे और उनके पिता नंदा और माता मुरा थी ,और यही कारन है की उनका उपनाम मौर्य था। जबकि कही उन्हें नंद का वंशज भी कहा गया है। चंद्रगुप्त को मिलाकर नंदा और मुरा के 100 बेटे थे ।चन्द्रगुप्त मौर्या का शुरुआती जीवन बहुत ही दुखद था। क्योंकि उनके जन्म के पहले ही उनके पिता का निधन हो गया था।और जब चन्द्रगुप्त 10 साल के हुए तब उनकी मां मुरा का भी निधन हो गया था।
वही इतिहासकारों का कहना है, की चन्द्रगुप्त मौर्य के पिता दो भाई थे, जिनका नाम नवनादास था। जो चन्द्रगुप्त के पिता के सौतेले भाई थे। दोनों भाइयो में आपसी रंजिस के चलते नंदा के निधन के बाद नवनादास ने चन्द्रगुप्त के 99 भाइयो को मार दिया। पर चन्द्रगुप्त मौर्य वहां से किसी तरह बच निकले और मगध साम्राज्य में छिप कर रहने लगते है।
चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने जीवन काल में दो शादियाँ की पहली पत्नी दुर्धरा थी, जिनसे बिंदुसार नाम का पुत्र हुआ, इसके अलावा दूसरी पत्नी हेलना थी, जिनसे उन्हें जस्टिन नाम का पुत्र हुआ।मगध में चन्द्रगुप्त की मुलाकात उस समय के सबसे महान अर्थशास्त्री, राजनीति विज्ञान में निपुण एक बुद्धिमान गुरु आचार्य चाणक्य से होती है। जो उस समय तक्षशिला में प्रिंसिपल थे।
चाणक्य, चन्द्रगुप्त को लेकर तक्षशिला चले जाते है। जहाँ पर उन्होंने चन्द्रगुप्त को हर तरह की शिक्षा और गुण सिखलाते हैं। जब सिकंदर ने भारत पर अकर्मण किया तो यहाँ के कई राजाओ ने सिकंदर की अधीनता स्वीकार कर लिया। उनमे से एक थे, तक्षशिला नरेश आम्भी। आम्भी का सिकंदर से मिल जाने के बाद चाणक्य ने भारत की अखंडता और संस्कृति को बचाने के लिए मगध सम्राट धनानंद से मदद मांगी।
पर भोग-विलास एवं घमंड में चूर धनानंद ने चाणक्य का अपमान किया और वहां से भगा दिया।
अपने अपमान का बदला लेने के लिए चाणक्य ने चन्द्रगुप्त के साथ मिलकर एक सेना का गठन किया। जिसका सेनापति उन्होंने चन्द्रगुप्त मौर्या को बनाया। आचार्य चाणक्य ने नंद साम्राज्य के पतन और अखण्ड भारत की शपथ ली थी। लेकिन अखण्ड भारत के लिए उन्हें मगध सम्राट धनानंद को भी हराना था।
जो बहुत ही मुश्किल था। क्योंकी उस समय मगध की सेना बहुत बड़ी और ताकतवर थी।
यही कारण था की चन्द्रगुप्त को जहां चाणक्य जैसे महान, यशस्वी, कूटनीतिज्ञ, दार्शनिक और बुद्धिमान गुरू की जरूरत थी, तो वहीं चाणक्य को चन्द्रगुप्त जैसे एक पराक्रमी योद्धा एवं सेनापति की जरूरत थी।
इतिहास के अनुसार मौर्य साम्राज्य की स्थापना में चाणक्य का बहुत बड़ा योगदान था।
मगध सम्राट धनानंद की क्रूरता और यवनों के अकर्मण को बढ़ते देख चाणक्य और चन्द्रगुप्त ने अपने सैन्य शक्ति का विस्तार आरंभ कर दिए। इसके बाद चन्द्रगुप्त ने हिमालय प्रदेश के राजा पर्वतक से संधि की। चाणक्य की कूटनीति से चन्द्रगुप्त ने कई बडे़ राज्यों को अपने साथ में लेकर पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया । चन्द्रगुप्त मौर्य का यह सबसे महत्वपूर्ण युद्ध था।
क्योंकी यह युद्ध चन्द्रगुप्त ने अपने उत्तराधिकार के लिया लड़ा और नंद वंश के अस्तित्व को मिटाने में सफल हुए। चन्द्रगुप्त ने चाणक्य की सहायता से मौर्य वंश की स्थापना कर चाणक्य को मगध का मुख्य सलाहकार एवं प्रधानमंत्री घोषित किया।
मगध सम्राट बनने के बाद चन्द्रगुप्त मौर्य एक ताकतवर शासक के रूप में सबके सामने नजर आये।
चाणक्य के मार्गदर्शन और उनके कथन अनुसार चलकर चन्द्रगुप्त ने पश्चिम में बर्मा और जम्मू-कश्मीर से दक्षिण के हैदराबाद तक अपने मौर्य साम्राज्य का विस्तार करने में सफलता हासिल की। सिकंदर के मृत्यु के बाद सिकंदर द्वारा जीते गये सभी छोटे छोटे राज्य अब स्वतंत्र हो गये थे। इसी अवसर को देख चन्द्रगुप्त ने सभी राज्यों को जीत कर मौर्य साम्राज्य में मिला लिया।
और अपने साम्राज्य का विस्तार उत्तर-पश्चिम में ईरान से लेकर पूर्व में बंगाल तक तथा उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में उत्तरी कर्नाटक तक कर लिया।
इतिहासकारों के अनुसार चन्द्रगुप्त ने सम्पूर्ण भारत को अपने विशाल सैनिकों द्वारा जीतकर अपने अधीन कर लिया। और 305 ईसा पूर्व में फारस को भी अपने अधिकार में लेकर मौर्य साम्राज्य में मिला लिया।
चन्द्रगुप्त मौर्य ने इसके बाद सिकन्दर के सेनापति सेल्यूकस निकेटर के राज्य पर आक्रमण कर उसे भी अपने साम्राज्य में मिला लिया और उससे संधि कर ली। सेल्यूकस निकेटर ने संधि के बाद यवन राजकुमारी से चन्द्रगुप्त मौर्य की शादी कर दी। खुश होकर सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने निकेटर को 500 हाथियों की विशाल सेना भेंट दी। इस तरह चन्द्रगुप्त ने पुरे भारत के छोटे छोटे राज्यों को मौर्य साम्राज्य में मिला लिया
और चाणक्य के अखण्ड भारत के सपना को साकार किया। चन्द्रगुप्त मौर्य ने करीब 24 वर्षो तक पुरे भारत पर राज्य किया।
298 ईसा पूर्व , करीब 50 साल की उम्र में चन्द्रगुप्त ने अपना साम्राज्य अपने बेटे बिंदुसार को देकर कर्नाटक चले गए, जहाँ उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।
चन्द्रगुप्त मौर्य के जाने के बाद बिंदुसार ने अपने विवेक एवं पूर्ण कुशलता के साथ मौर्य साम्राज्य को आगे बढाया, जिनका साथ चाणक्य ने दिया!
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