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हुमायूँ का इतिहास और जीवन परिचय ( History of Humayun in Hindi )

हुमायूँ का इतिहास


हुमायूँ मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर का सबसे बड़ा और बुद्धिमान पुत्र था। जिसका जन्म 6 मार्च 1508 ईस्वी को क़ाबुल में हुआ था। हुमायूँ के तीन और भाई थे जिसका नाम। हिंदाल। कामरान मिर्ज़ा। और अस्करी था। जो स्वाभाव में हुमायूँ के विपरीत था।

हुमायूँ अपने पिता के आज्ञा के अनुसार पुरे साम्राज्य का बटवारा सभी भाइयो में बराबर किया था। उसने अस्करी को संभल। कामरान को काबुल और कंधार। हिन्दाल को अलवर। और अपने चचेरे भाई सुलेमान मिर्जा को बदख्शाँ का जागीर दिया था। परन्तु वे सब इतना लेकर भी चुप रहने वालो में से नही थे। और बराबर हुमायूँ से युद्ध करते रहते।

हुमायूँ को 12 वर्ष की आयु में ही बदख्शां के सूबेदार के रुप में नियुक्त किया गया था। इसके बाद हुमायूँ को बाबर के मौत के बाद 29 दिसम्बर 1530 ईस्वी को मुग़ल साम्राज्य का दूसरा शासक घोषित किया गया था। हुमायूँ का शासनकाल 1530 से लेकर 1540 तक था इसके बाद उसे शेरशाह सूरी से हार कर वापस लौटना पड़ गया था। 

दौहारिया का युद्ध.


दौहारिया का युद्ध मुग़ल शासक हुमायूँ और अफगान सरदार महमूद लोदी के बीच साल 1532 ईस्वी में लड़ा गया था इस युद्ध में महमूद लोदी की हार और हुमायूँ की जीत हुई थी। यह युद्ध दौहारिया नामक स्थान के बीच हुआ था इसी कारण इस युद्ध का नाम दौहारिया का युद्ध पड़ा।

हुमायूँ और शेरशाह सूरी के बीच युद्ध.  

हुमायूँ और शेरशाह सूरी के बीच युद्ध.


1535 ईस्वी के मध्य में गुजरात के शासक बहादुर शाह कई युद्ध लगातार जीते जा रहा था और अपने राज्य का विस्तार बहुत तेज़ी से कर रहा था जिससे बहादुर शाह की बढ़ती शक्ति हुमायूँ को खटकने लगा था। बहादुर शाह की बढती शक्ति को दबाने के लिए हुमायूँ ने सारंगपुर में उसकी सेना पर आक्रमण कर दिया और उस युद्ध को जीत लिया।  

एक के बाद एक कर के कई युद्ध जितने के बाद हुमायूँ की नज़र बिहार और बंगाल पर पड़ी जहां पर शेरशाह सूरी का बोलबाला था। क्योकि शेरशाह एक बहुत ही शक्तिशाली अफगान शासक था। जिसका वर्चस्व बिहार और बंगाल में था। शेरशाह की शक्ति को दबाने के लिए हुमायूँ ने चुमानगढ़ के किला पर सन 1538 ईस्वी में हमला कर दिया और कई महीने तक चले इस युद्ध में आखिरकार हुमायूँ विजयी हुआ और अपने मनसूबे में कामयाब हो गया।

चौसा का युद्ध.    

चौसा का युद्ध


चौसा का युद्ध मुग़ल शासक हुमायूँ और अफगान शासक शेरशाह के बीच बक्सर के पास चौसा नामक स्थान के पास 29 जून 1539 ईस्वी को हुआ था। जब हुमायूँ बंगाल में जीत के पश्चात लौट रहा था उसी समय शेरशाह ने बदला लेने के लिए उसपर आक्रमण कर दिया था। चौसा के युद्ध में मुग़ल को भारी नुकसान उठाना पड़ा था और उसके बहुत सैनिक भी मारे गये थे।

चौसा के युद्ध में मुग़ल शासक हुमायूँ को भागकर अपनी जान बचानी पड़ी थी इस तरह इस युद्ध में मुग़ल को एकतरफा हार का सामना करना पड़ा और शेरशाह सूरी विजयी हुआ। चौसा युद्ध में मिली जीत के बाद उसे शेरशाह की उपाधि से नवाजा गया था। मुग़लो का इसके बाद पतन हो गया और उसका शासक हुमायूँ अपनी जान बचाने के लिए अपने भाइयो का सहारा लिया।

कन्नौज (बिल ग्राम) का युद्ध.     

कन्नौज (बिल ग्राम) का युद्ध.


चौसा के युद्ध के बाद एक बार फिर मुग़ल शासक हुमायूँ और अफगान शासक शेरशाह के बीच एक युद्ध बिल ग्राम और कन्नौज में 17 मई 15 सौ 40 ईस्वी को लड़ा गया। इस युद्ध में हुमायूँ के तरफ से उसके दो भाई अस्कारी और हिन्दाल भी लड़ रहे थे परन्तु एक बार फिर इस युद्ध में हुमायूँ को हार का सामना करना पड़ा और शेरशाह दोबारा हुमायूँ को हराने में सफल रहा। 

कन्नौज का युद्ध हुमायूँ के लिए निर्णायक युद्ध था क्योकि इसके बाद उसे दिल्ली छोड़ भागना पड़ा और वह सिंध में जाकर छुप गया था। 1540 ईस्वी से लेकर 1555 ईस्वी तक हुमायूँ निर्वासित जीवन व्यतीत किया और अपने जीवन के 15 वर्ष निर्वासित रहा। हुमायूँ ने इसी अवधी के दौरान हिन्दाल के आध्यात्मिक गुरू की पुत्री हमीदाबानों बेगम से निकाह कर लिया जिसके बाद उससे एक पुत्र अकबर पैदा हुआ

जो हुमायूँ के बाद मुग़ल साम्राज्य का शासक बना और उसके साम्राज्य को आगे बढाया।

सरहिन्द का युद्ध.

सरहिंद का युद्ध 15 मई 1555 ईस्वी को मुगलों और अफगानों के बीच सरहिंद के पास हुआ जिसमे मुगलों का नेतृत्व बैरम खां ने और अफगानों का नेतृत्व सिकंदर सुर ने किया था इस युद्ध में मुगलों की जीत और अफगानों की हार हुई थी। इस युद्ध के पश्चात एक बार फिर मुग़ल दिल्ली में अपना सत्ता स्थापित करने में कामयाब हुए

 और 23 जुलाई 1555 ईस्वी को एक बार फिर हुमायूँ को मुगलों का शासक घोषित किया गया।  

सरहिंद युद्ध को जितने के बाद हुमायूँ को दूसरी बार सत्ता में लाया गया था परन्तु इसके बाद वह ज्यादा दिन तक जीवीत नही रह सका और 1 जनवरी 1556 ईस्वी को दीन पनाह भवन की सीढियों से गिर कर उसकी मृत्यु हो गयी।



हुमायूँ के मृत्यु के बाद उसके बेटे अकबर को मुग़ल साम्राज्य का तीसरा शासक घोषित किया। शासक बनने के समय अकबर महज 14 वर्ष का था इसी कारन बैरम खां को उसका अंगरक्षक बनाया गया जो अकबर का बहुत ही वफादार सेनापति भी था। हुमायूँ के मौत के बाद उसकी बीबी हमीदा बानू बेगम ने हुमायूँ का मकबरा बनाया जो ऐतिहासिक ईमारतो में से एक है।  

उम्मीद है ये आर्टिकल आप को पसंद आई होगी।

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